कुछ मंजिलों के निशां न थे
कुछ रास्तों की पहचां न थी,
कुछ सही का यों हौंसला न था,
कुछ गलत पे जिन्दगी मेहरबां न थी ।
कुछ सपनों के पीछे थक कर
कुछ हकीकत से आंखें मथकर,
मुड़कर देखा तो कुछ भी न था
कुछ भी दुवाओं में जाँ न थी ।
कुछ जो हाथ है छूट न जाये
कुछ जो पास है दूर न जाये,
और कितने मंजर हैं अब बाकी
कुछ मंजर के तोे अरमाँ न थे ।
कुछ मंजिलों के निशां न थे
कुछ रास्तों की पहचां न थी ।
बहुत सुंदर।
सादर आभार
एक दर्द।👌
सादर आभार
Wow
nicely penned.
Humble thanks
💐🙏🏻