Submissively Yours

कुछ मंजिलों के निशां न थे
कुछ रास्तों की पहचां न थी,
कुछ सही का यों हौंसला न था,
कुछ गलत पे जिन्दगी मेहरबां न थी ।

कुछ सपनों के पीछे थक कर
कुछ हकीकत से आंखें मथकर,
मुड़कर देखा तो कुछ भी न था
कुछ भी दुवाओं में जाँ न थी ।

कुछ जो हाथ है छूट न जाये
कुछ जो पास है दूर न जाये,
और कितने मंजर हैं अब बाकी
कुछ मंजर के तोे अरमाँ न थे ।

कुछ मंजिलों के निशां न थे
कुछ रास्तों की पहचां न थी ।

Published by J M Negi

No experience only flair

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